Aditya L1: लैग्रेंज बिंदु पर कैसे पहुंचा आदित्य-एल1, 120 दिन के लंबे सफर के बाद अब आगे क्या ?

Aditya L1: लैग्रेंज बिंदु पर कैसे पहुंचा आदित्य-एल1, 120 दिन के लंबे सफर के बाद अब आगे क्या ?

Aditya-L1: आदित्य एल-1 को लैग्रेंजियन बिन्दु 1 (एल1) तक पहुंचने में लगभग चार महीने लगे। इस दौरान मिशन ने 15 लाख किलोमीटर चलाए। यह भी एक अलग कक्षा से गुजरकर अपने लक्ष्य तक पहुंचा, जैसा कि चंद्रयान-3 ने किया था।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारने के बाद एक और इतिहास रच दिया। शनिवार को आदित्य-एल1 मिशन राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी (इसरो ) द्वारा लैग्रेंजियन बिंदु तक पहुंच गया है। सूर्य का अध्ययन करना इस मिशन का लक्ष्य है।

आदित्य-एल1 मिशन, चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता के बाद भी विश्व भर में चर्चा का विषय रहा है। आदित्य -L1 क्या है? लॉन्च कब हुआ? मिशन का लक्ष्य क्या था? इस दौरान क्या-क्या हुआ? मिशन पहुंचने के बाद क्या करेगा?  समझते है 

पहले जानते हैं आदित्य-एल1 क्या है?

आदित्य एल1 मिशन सूर्य का अध्ययन करना है। इसके साथ ही इसरो ने इसे भारत का पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला मिशन बताया है। आदित्य-L1 2 सितंबर 2023 को उपलब्ध होगा। आदित्य एल1 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था। भारत का आदित्य एल1 अभियान सौर विस्फोटों और सूर्य की अदृश्य किरणों से उत्पन्न ऊर्जा का रहस्य खोजेगा ।

अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर, लगभग 15 लाख किमी दूर, एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करना था। दरअसल, लैग्रेंजियन बिंदु में दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। इसलिए एल1 बिंदु को अन्तरिक्ष उड़ने में उपयोग किया जा सकता है।

मिशन अपने गंतव्य पर कैसे पहुंचा?

आदित्य एल-1 को लैग्रेंजियन बिन्दु 1 (एल1) तक पहुंचने में लगभग चार महीने लगे। इस दौरान यह 15 लाख किलोमीटर चला गया। यह भी एक अलग कक्षा से गुजरकर अपने लक्ष्य तक पहुंचा, जैसा कि चंद्रयान-3 ने किया था। यानी आदित्य एल-1 को सीधे भी नहीं भेजा गया था। 

इस दौरान प्रक्रियाएं क्या-क्या हुईं?

प्रारंभिक कक्षा: अंतरिक्ष यान को प्रारंभ में पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया।

अण्डाकार कक्षा: फिर कक्षा को अधिक अण्डाकार बनाने वाली प्रक्रिया की गई।

पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बाहर निकालना: अंतरिक्ष यान को प्रणोदन का उपयोग करके L1 बिंदु की ओर बढ़ाया गया। जैसे ही अंतरिक्ष यान लैग्रेंज बिंदु की ओर बढ़ा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बाहर निकल आया।

क्रूज चरण: पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव को छोड़ने के बाद, मिशन का क्रूज चरण शुरू हुआ। इस चरण में अंतरिक्ष यान को उतारने की प्रक्रिया की गई।

हेलो ऑर्बिट: मिशन के अंतिम चरण में, अंतरिक्ष यान को लैग्रेंज बिंदु (एल1) के आसपास एक बड़ी हेलो कक्षा में स्थापित किया गया था। इस तरह, लॉन्चिंग और एल1 बिंदु के लिए हेलो कक्षा में अंतरिक्ष यान की स्थापना करने में लगभग चार महीने लगे।

मिशन के उद्देश्य क्या हैं?

भारत का महत्वाकांक्षी सौर मिशन आदित्य एल-1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी हिस्सा) की बनावट, तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूर्य में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।

मिशन के घटक कौन-कौन से हैं और वो क्या करेंगे?

सूर्य का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 मिशन ने सात वैज्ञानिक पेलोडों का एक सेट ले लिया है। सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी हिस्सा, सौर कोरोना, और सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोटों, कोरोनल मास इजेक्शन, की गतिशीलता को विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) अध्ययन करेगा।

सोलर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) नामक पेलोड अल्ट्रा-वायलेट (यूवी) के निकट सौर प्रकाशमंडल और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें लेगा। इसके साथ ही SUIT यूवी के नजदीक सौर विकिरण में होने वाले बदलावों को भी मापेगा।

आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स) और प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पीएपीए) पेलोड सौर पवन और शक्तिशाली आयनों के साथ-साथ उनके ऊर्जा वितरण का अध्ययन करेंगे।

सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS) और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS) विस्तृत एक्स-रे ऊर्जा रेंज में सूर्य से आने वाली एक्स-रे किरणों का अध्ययन करेंगे। वहीं, मैग्नेटोमीटर पेलोड को L1 बिंदु पर दो ग्रहों के बीच के चुंबकीय क्षेत्र को मापने के लिए बनाया गया है।

आदित्य-एल1 के सातों विज्ञान पेलोड की खास बात है कि ये देश में विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं। ये सभी पेलोड इसरो के विभिन्न केंद्रों के सहयोग से विकसित किए गए हैं।

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